ECCLESIASTES
Chapter 7
Eccl | UrduGeoD | 7:2 | ज़ियाफ़त करनेवालों के घर में जाने की निसबत मातम करनेवालों के घर में जाना बेहतर है, क्योंकि हर इनसान का अंजाम मौत ही है। जो ज़िंदा हैं वह इस बात पर ख़ूब ध्यान दें। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:4 | दानिशमंद का दिल मातम करनेवालों के घर में ठहरता जबकि अहमक़ का दिल ऐशो-इशरत करनेवालों के घर में टिक जाता है। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:6 | अहमक़ के क़हक़हे देगची तले चटख़नेवाले काँटों की आग की मानिंद हैं। यह भी बातिल ही है। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:10 | यह न पूछ कि आज की निसबत पुराना ज़माना बेहतर क्यों था, क्योंकि यह हिकमत की बात नहीं। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:11 | अगर हिकमत के अलावा मीरास में मिलकियत भी मिल जाए तो यह अच्छी बात है, यह उनके लिए सूदमंद है जो सूरज देखते हैं। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:12 | क्योंकि हिकमत पैसों की तरह पनाह देती है, लेकिन हिकमत का ख़ास फ़ायदा यह है कि वह अपने मालिक की जान बचाए रखती है। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:14 | ख़ुशी के दिन ख़ुश हो, लेकिन मुसीबत के दिन ख़याल रख कि अल्लाह ने यह दिन भी बनाया और वह भी इसलिए कि इनसान अपने मुस्तक़बिल के बारे में कुछ मालूम न कर सके। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:15 | अपनी अबस ज़िंदगी के दौरान मैंने दो बातें देखी हैं। एक तरफ़ रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी के बावुजूद तबाह हो जाता जबकि दूसरी तरफ़ बेदीन अपनी बेदीनी के बावुजूद उम्ररसीदा हो जाता है। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:16 | न हद से ज़्यादा रास्तबाज़ी दिखा, न हद से ज़्यादा दानिशमंदी। अपने आपको तबाह करने की क्या ज़रूरत है? | |
Eccl | UrduGeoD | 7:17 | न हद से ज़्यादा बेदीनी, न हद से ज़्यादा हमाक़त दिखा। मुक़र्ररा वक़्त से पहले मरने की क्या ज़रूरत है? | |
Eccl | UrduGeoD | 7:18 | अच्छा है कि तू यह बात थामे रखे और दूसरी भी न छोड़े। जो अल्लाह का ख़ौफ़ माने वह दोनों ख़तरों से बच निकलेगा। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:20 | दुनिया में कोई भी इनसान इतना रास्तबाज़ नहीं कि हमेशा अच्छा काम करे और कभी गुनाह न करे। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:21 | लोगों की हर बात पर ध्यान न दे, ऐसा न हो कि तू नौकर की लानत भी सुन ले जो वह तुझ पर करता है। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:23 | हिकमत के ज़रीए मैंने इन तमाम बातों की जाँच-पड़ताल की। मैं बोला, “मैं दानिशमंद बनना चाहता हूँ,” लेकिन हिकमत मुझसे दूर रही। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:25 | चुनाँचे मैं रुख़ बदलकर पूरे ध्यान से इसकी तहक़ीक़ो-तफ़तीश करने लगा कि हिकमत और मुख़्तलिफ़ बातों के सहीह नतायज क्या हैं। नीज़, मैं बेदीनी की हमाक़त और बेहुदगी की दीवानगी मालूम करना चाहता था। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:26 | मुझे मालूम हुआ कि मौत से कहीं तलख़ वह औरत है जो फंदा है, जिसका दिल जाल और हाथ ज़ंजीरें हैं। जो आदमी अल्लाह को मंज़ूर हो वह बच निकलेगा, लेकिन गुनाहगार उसके जाल में उलझ जाएगा। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:27 | वाइज़ फ़रमाता है, “यह सब कुछ मुझे मालूम हुआ जब मैंने मुख़्तलिफ़ बातें एक दूसरे के साथ मुंसलिक कीं ताकि सहीह नतायज तक पहुँचूँ। | |
Eccl | UrduGeoD | 7:28 | लेकिन जिसे मैं ढूँडता रहा वह न मिला। हज़ार अफ़राद में से मुझे सिर्फ़ एक ही दियानतदार मर्द मिला, लेकिन एक भी दियानतदार औरत नहीं। | |