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Chapter 29
Job | UrduGeoD | 29:3 | जब उस की शमा मेरे सर के ऊपर चमकती रही और मैं उस की रौशनी की मदद से अंधेरे में चलता था। | |
Job | UrduGeoD | 29:11 | जिस कान ने मेरी बातें सुनीं उसने मुझे मुबारक कहा, जिस आँख ने मुझे देखा उसने मेरे हक़ में गवाही दी। | |
Job | UrduGeoD | 29:12 | क्योंकि जो मुसीबत में आकर आवाज़ देता उसे मैं बचाता, बेसहारा यतीम को छुटकारा देता था। | |
Job | UrduGeoD | 29:13 | तबाह होनेवाले मुझे बरकत देते थे। मेरे बाइस बेवाओं के दिलों से ख़ुशी के नारे उभर आते थे। | |
Job | UrduGeoD | 29:14 | मैं रास्तबाज़ी से मुलब्बस और रास्तबाज़ी मुझसे मुलब्बस रहती थी, इनसाफ़ मेरा चोग़ा और पगड़ी था। | |
Job | UrduGeoD | 29:16 | मैं ग़रीबों का बाप था, और जब कभी अजनबी को मुक़दमा लड़ना पड़ा तो मैं ग़ौर से उसके मामले का मुआयना करता था ताकि उसका हक़ मारा न जाए। | |
Job | UrduGeoD | 29:18 | उस वक़्त मेरा ख़याल था, ‘मैं अपने ही घर में वफ़ात पाऊँगा, सीमुरग़ की तरह अपनी ज़िंदगी के दिनों में इज़ाफ़ा करूँगा। | |
Job | UrduGeoD | 29:20 | मेरी इज़्ज़त हर वक़्त ताज़ा रहेगी, और मेरे हाथ की कमान को नई तक़वियत मिलती रहेगी।’ | |
Job | UrduGeoD | 29:22 | मेरे बात करने पर वह जवाब में कुछ न कहते बल्कि मेरे अलफ़ाज़ हलकी-सी बूँदा-बाँदी की तरह उन पर टपकते रहते। | |
Job | UrduGeoD | 29:23 | जिस तरह इनसान शिद्दत से बारिश के इंतज़ार में रहता है उसी तरह वह मेरे इंतज़ार में रहते थे। वह मुँह पसारकर बहार की बारिश की तरह मेरे अलफ़ाज़ को जज़ब कर लेते थे। | |
Job | UrduGeoD | 29:24 | जब मैं उनसे बात करते वक़्त मुसकराता तो उन्हें यक़ीन नहीं आता था, मेरी उन पर मेहरबानी उनके नज़दीक निहायत क़ीमती थी। | |