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Chapter 31
Job | UrduGeoD | 31:1 | मैंने अपनी आँखों से अहद बाँधा है। तो फिर मैं किस तरह किसी कुँवारी पर नज़र डाल सकता हूँ? | |
Job | UrduGeoD | 31:2 | क्योंकि इनसान को आसमान पर रहनेवाले ख़ुदा की तरफ़ से क्या नसीब है, उसे बुलंदियों पर बसनेवाले क़ादिरे-मुतलक़ से क्या विरासत पाना है? | |
Job | UrduGeoD | 31:5 | न मैं कभी धोके से चला, न मेरे पाँवों ने कभी फ़रेब देने के लिए फुरती की। अगर इसमें ज़रा भी शक हो | |
Job | UrduGeoD | 31:7 | अगर मेरे क़दम सहीह राह से हट गए, मेरी आँखें मेरे दिल को ग़लत राह पर ले गईं या मेरे हाथ दाग़दार हुए | |
Job | UrduGeoD | 31:8 | तो फिर जो बीज मैंने बोया उस की पैदावार कोई और खाए, जो फ़सलें मैंने लगाईं उन्हें उखाड़ा जाए। | |
Job | UrduGeoD | 31:9 | अगर मेरा दिल किसी औरत से नाजायज़ ताल्लुक़ात रखने पर उकसाया गया और मैं इस मक़सद से अपने पड़ोसी के दरवाज़े पर ताक लगाए बैठा | |
Job | UrduGeoD | 31:10 | तो फिर अल्लाह करे कि मेरी बीवी किसी और आदमी की गंदुम पीसे, कि कोई और उस पर झुक जाए। | |
Job | UrduGeoD | 31:12 | ऐसे गुनाह की आग पाताल तक सब कुछ भस्म कर देती है। अगर वह मुझसे सरज़द होता तो मेरी तमाम फ़सल जड़ों तक राख कर देता। | |
Job | UrduGeoD | 31:14 | तो मैं क्या करूँ जब अल्लाह अदालत में खड़ा हो जाए? जब वह मेरी पूछ-गछ करे तो मैं उसे क्या जवाब दूँ? | |
Job | UrduGeoD | 31:15 | क्योंकि जिसने मुझे मेरी माँ के पेट में बनाया उसने उन्हें भी बनाया। एक ही ने उन्हें भी और मुझे भी रहम में तश्कील दिया। | |
Job | UrduGeoD | 31:16 | क्या मैंने पस्तहालों की ज़रूरियात पूरी करने से इनकार किया या बेवा की आँखों को बुझने दिया? हरगिज़ नहीं! | |
Job | UrduGeoD | 31:18 | हरगिज़ नहीं, बल्कि अपनी जवानी से लेकर मैंने उसका बाप बनकर उस की परवरिश की, अपनी पैदाइश से ही बेवा की राहनुमाई की। | |
Job | UrduGeoD | 31:19 | जब कभी मैंने देखा कि कोई कपड़ों की कमी के बाइस हलाक हो रहा है, कि किसी ग़रीब के पास कम्बल तक नहीं | |
Job | UrduGeoD | 31:20 | तो मैंने उसे अपनी भेड़ों की कुछ ऊन दी ताकि वह गरम हो सके। ऐसे लोग मुझे दुआ देते थे। | |
Job | UrduGeoD | 31:21 | मैंने कभी भी यतीमों के ख़िलाफ़ हाथ नहीं उठाया, उस वक़्त भी नहीं जब शहर के दरवाज़े में बैठे बुज़ुर्ग मेरे हक़ में थे। | |
Job | UrduGeoD | 31:22 | अगर ऐसा न था तो अल्लाह करे कि मेरा शाना कंधे से निकलकर गिर जाए, कि मेरा बाज़ू जोड़ से फाड़ा जाए! | |
Job | UrduGeoD | 31:23 | ऐसी हरकतें मेरे लिए नामुमकिन थीं, क्योंकि अगर मैं ऐसा करता तो मैं अल्लाह से दहशत खाता रहता, मैं उससे डर के मारे क़ायम न रह सकता। | |
Job | UrduGeoD | 31:24 | क्या मैंने सोने पर अपना पूरा भरोसा रखा या ख़ालिस सोने से कहा, ‘तुझ पर ही मेरा एतमाद है’? हरगिज़ नहीं! | |
Job | UrduGeoD | 31:25 | क्या मैं इसलिए ख़ुश था कि मेरी दौलत ज़्यादा है और मेरे हाथ ने बहुत कुछ हासिल किया है? हरगिज़ नहीं! | |
Job | UrduGeoD | 31:28 | हरगिज़ नहीं, क्योंकि यह भी सज़ा के लायक़ जुर्म है। अगर मैं ऐसा करता तो बुलंदियों पर रहनेवाले ख़ुदा का इनकार करता। | |
Job | UrduGeoD | 31:29 | क्या मैं कभी ख़ुश हुआ जब मुझसे नफ़रत करनेवाला तबाह हुआ? क्या मैं बाग़ बाग़ हुआ जब उस पर मुसीबत आई? हरगिज़ नहीं! | |
Job | UrduGeoD | 31:31 | बल्कि मेरे ख़ैमे के आदमियों को तसलीम करना पड़ा, ‘कोई नहीं है जो अय्यूब के गोश्त से सेर न हुआ।’ | |
Job | UrduGeoD | 31:32 | अजनबी को बाहर गली में रात गुज़ारनी नहीं पड़ती थी बल्कि मेरा दरवाज़ा मुसाफ़िरों के लिए खुला रहता था। | |
Job | UrduGeoD | 31:34 | इसलिए कि हुजूम से डरता और अपने रिश्तेदारों से दहशत खाता था? हरगिज़ नहीं! मैंने कभी भी ऐसा काम न किया जिसके बाइस मुझे डर के मारे चुप रहना पड़ता और घर से निकल नहीं सकता था। | |
Job | UrduGeoD | 31:35 | काश कोई मेरी सुने! देखो, यहाँ मेरी बात पर मेरे दस्तख़त हैं, अब क़ादिरे-मुतलक़ मुझे जवाब दे। काश मेरे मुख़ालिफ़ लिखकर मुझे वह इलज़ामात बताएँ जो उन्होंने मुझ पर लगाए हैं! | |
Job | UrduGeoD | 31:36 | अगर इलज़ामात का काग़ज़ मिलता तो मैं उसे उठाकर अपने कंधे पर रखता, उसे पगड़ी की तरह अपने सर पर बाँध लेता। | |
Job | UrduGeoD | 31:37 | मैं अल्लाह को अपने क़दमों का पूरा हिसाब-किताब देकर रईस की तरह उसके क़रीब पहुँचता। | |
Job | UrduGeoD | 31:38 | क्या मेरी ज़मीन ने मदद के लिए पुकारकर मुझ पर इलज़ाम लगाया है? क्या उस की रेघारयाँ मेरे सबब से मिलकर रो पड़ी हैं? | |
Job | UrduGeoD | 31:39 | क्या मैंने उस की पैदावार अज्र दिए बग़ैर खाई, उस पर मेहनत-मशक़्क़त करनेवालों के लिए आहें भरने का बाइस बन गया? हरगिज़ नहीं! | |