Chapter 1
| Eccl | UrduGeoD | 1:1 | ज़ैल में वाइज़ के अलफ़ाज़ क़लमबंद हैं, उसके जो दाऊद का बेटा और यरूशलम में बादशाह है, | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:5 | सूरज तुलू और ग़ुरूब हो जाता है, फिर सुरअत से उसी जगह वापस चला जाता है जहाँ से दुबारा तुलू होता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:6 | हवा जुनूब की तरफ़ चलती, फिर मुड़कर शिमाल की तरफ़ चलने लगती है। यों चक्कर काट काटकर वह बार बार नुक़ताए-आग़ाज़ पर वापस आती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:7 | तमाम दरिया समुंदर में जा मिलते हैं, तो भी समुंदर की सतह वही रहती है, क्योंकि दरियाओं का पानी मुसलसल उन सरचश्मों के पास वापस आता है जहाँ से बह निकला है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:8 | इनसान बातें करते करते थक जाता है और सहीह तौर से कुछ बयान नहीं कर सकता। आँख कभी इतना नहीं देखती कि कहे, “अब बस करो, काफ़ी है।” कान कभी इतना नहीं सुनता कि और न सुनना चाहे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:9 | जो कुछ पेश आया वही दुबारा पेश आएगा, जो कुछ किया गया वही दुबारा किया जाएगा। सूरज तले कोई भी बात नई नहीं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:10 | क्या कोई बात है जिसके बारे में कहा जा सके, “देखो, यह नई है”? हरगिज़ नहीं, यह भी हमसे बहुत देर पहले ही मौजूद थी। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:11 | जो पहले ज़िंदा थे उन्हें कोई याद नहीं करता, और जो आनेवाले हैं उन्हें भी वह याद नहीं करेंगे जो उनके बाद आएँगे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:13 | मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि जो कुछ आसमान तले किया जाता है उस की हिकमत के ज़रीए तफ़तीशो-तहक़ीक़ करूँ। यह काम ना-गवार है गो अल्लाह ने ख़ुद इनसान को इसमें मेहनत-मशक़्क़त करने की ज़िम्मादारी दी है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:14 | मैंने तमाम कामों का मुलाहज़ा किया जो सूरज तले होते हैं, तो नतीजा यह निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:16 | मैंने दिल में कहा, “हिक्मत में मैंने इतना इज़ाफ़ा किया और इतनी तरक़्क़ी की कि उन सबसे सबक़त ले गया जो मुझसे पहले यरूशलम पर हुकूमत करते थे। मेरे दिल ने बहुत हिकमत और इल्म अपना लिया है।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 1:17 | मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत समझूँ, नीज़ कि मुझे दीवानगी और हमाक़त की समझ भी आए। लेकिन मुझे मालूम हुआ कि यह भी हवा को पकड़ने के बराबर है। | |
Chapter 2
| Eccl | UrduGeoD | 2:1 | मैंने अपने आपसे कहा, “आ, ख़ुशी को आज़माकर अच्छी चीज़ों का तजरबा कर!” लेकिन यह भी बातिल ही निकला। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:3 | मैंने दिल में अपना जिस्म मै से तरो-ताज़ा करने और हमाक़त अपनाने के तरीक़े ढूँड निकाले। इसके पीछे भी मेरी हिकमत मालूम करने की कोशिश थी, क्योंकि मैं देखना चाहता था कि जब तक इनसान आसमान तले जीता रहे उसके लिए क्या कुछ करना मुफ़ीद है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:7 | मैंने ग़ुलाम और लौंडियाँ ख़रीद लीं। ऐसे ग़ुलाम भी बहुत थे जो घर में पैदा हुए थे। मुझे उतने गाय-बैल और भेड़-बकरियाँ मिलीं जितनी मुझसे पहले यरूशलम में किसी को हासिल न थीं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:8 | मैंने अपने लिए सोना-चाँदी और बादशाहों और सूबों के ख़ज़ाने जमा किए। मैंने गुलूकार मर्दो-ख़वातीन हासिल किए, साथ साथ कसरत की ऐसी चीज़ें जिनसे इनसान अपना दिल बहलाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:9 | यों मैंने बहुत तरक़्क़ी करके उन सब पर सबक़त हासिल की जो मुझसे पहले यरूशलम में थे। और हर काम में मेरी हिकमत मेरे दिल में क़ायम रही। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:10 | जो कुछ भी मेरी आँखें चाहती थीं वह मैंने उनके लिए मुहैया किया, मैंने अपने दिल से किसी भी ख़ुशी का इनकार न किया। मेरे दिल ने मेरे हर काम से लुत्फ़ उठाया, और यह मेरी तमाम मेहनत-मशक़्क़त का अज्र रहा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:11 | लेकिन जब मैंने अपने हाथों के तमाम कामों का जायज़ा लिया, उस मेहनत-मशक़्क़त का जो मैंने की थी तो नतीजा यही निकला कि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। सूरज तले किसी भी काम का फ़ायदा नहीं होता। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:12 | फिर मैं हिकमत, बेहुदगी और हमाक़त पर ग़ौर करने लगा। मैंने सोचा, जो आदमी बादशाह की वफ़ात पर तख़्तनशीन होगा वह क्या करेगा? वही कुछ जो पहले भी किया जा चुका है! | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:14 | दानिशमंद के सर में आँखें हैं जबकि अहमक़ अंधेरे ही में चलता है। लेकिन मैंने यह भी जान लिया कि दोनों का एक ही अंजाम है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:15 | मैंने दिल में कहा, “अहमक़ का-सा अंजाम मेरा भी होगा। तो फिर इतनी ज़्यादा हिकमत हासिल करने का क्या फ़ायदा है? यह भी बातिल है।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:16 | क्योंकि अहमक़ की तरह दानिशमंद की याद भी हमेशा तक नहीं रहेगी। आनेवाले दिनों में सबकी याद मिट जाएगी। अहमक़ की तरह दानिशमंद को भी मरना ही है! | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:17 | यों सोचते सोचते मैं ज़िंदगी से नफ़रत करने लगा। जो भी काम सूरज तले किया जाता है वह मुझे बुरा लगा, क्योंकि सब कुछ बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:18 | सूरज तले मैंने जो कुछ भी मेहनत-मशक़्क़त से हासिल किया था उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि मुझे यह सब कुछ उसके लिए छोड़ना है जो मेरे बाद मेरी जगह आएगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:19 | और क्या मालूम कि वह दानिशमंद या अहमक़ होगा? लेकिन जो भी हो, वह उन तमाम चीज़ों का मालिक होगा जो हासिल करने के लिए मैंने सूरज तले अपनी पूरी ताक़त और हिकमत सर्फ़ की है। यह भी बातिल है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:20 | तब मेरा दिल मायूस होकर हिम्मत हारने लगा, क्योंकि जो भी मेहनत-मशक़्क़त मैंने सूरज तले की थी वह बेकार-सी लगी। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:21 | क्योंकि ख़ाह इनसान अपना काम हिकमत, इल्म और महारत से क्यों न करे, आख़िरकार उसे सब कुछ किसी के लिए छोड़ना है जिसने उसके लिए एक उँगली भी नहीं हिलाई। यह भी बातिल और बड़ी मुसीबत है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:22 | क्योंकि आख़िर में इनसान के लिए क्या कुछ क़ायम रहता है, जबकि उसने सूरज तले इतनी मेहनत-मशक़्क़त और कोशिशों के साथ सब कुछ हासिल कर लिया है? | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:23 | उसके तमाम दिन दुख और रंजीदगी से भरे रहते हैं, रात को भी उसका दिल आराम नहीं पाता। यह भी बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 2:24 | इनसान के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि खाए पिए और अपनी मेहनत-मशक़्क़त के फल से लुत्फ़अंदोज़ हो। लेकिन मैंने यह भी जान लिया कि अल्लाह ही यह सब कुछ मुहैया करता है। | |
Chapter 3
| Eccl | UrduGeoD | 3:10 | मैंने वह तकलीफ़देह काम-काज देखा जो अल्लाह ने इनसान के सुपुर्द किया ताकि वह उसमें उलझा रहे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:11 | उसने हर चीज़ को यों बनाया है कि वह अपने वक़्त के लिए ख़ूबसूरत और मुनासिब हो। उसने इनसान के दिल में जाविदानी भी डाली है, गो वह शुरू से लेकर आख़िर तक उस काम की तह तक नहीं पहुँच सकता जो अल्लाह ने किया है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:12 | मैंने जान लिया कि इनसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह ख़ुश रहे और जीते-जी ज़िंदगी का मज़ा ले। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:13 | क्योंकि अगर कोई खाए पिए और तमाम मेहनत-मशक़्क़त के साथ साथ ख़ुशहाल भी हो तो यह अल्लाह की बख़्शिश है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:14 | मुझे समझ आई कि जो कुछ अल्लाह करे वह अबद तक क़ायम रहेगा। उसमें न इज़ाफ़ा हो सकता है न कमी। अल्लाह यह सब कुछ इसलिए करता है कि इनसान उसका ख़ौफ़ माने। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:15 | जो हाल में पेश आ रहा है वह माज़ी में पेश आ चुका है, और जो मुस्तक़बिल में पेश आएगा वह भी पेश आ चुका है। हाँ, जो कुछ गुज़र चुका है उसे अल्लाह दुबारा वापस लाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:16 | मैंने सूरज तले मज़ीद देखा, जहाँ अदालत करनी है वहाँ नाइनसाफ़ी है, जहाँ इनसाफ़ करना है वहाँ बेदीनी है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:17 | लेकिन मैं दिल में बोला, “अल्लाह रास्तबाज़ और बेदीन दोनों की अदालत करेगा, क्योंकि हर मामले और काम का अपना वक़्त होता है।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:18 | मैंने यह भी सोचा, “जहाँ तक इनसानों का ताल्लुक़ है अल्लाह उनकी जाँच-पड़ताल करता है ताकि उन्हें पता चले कि वह जानवरों की मानिंद हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:19 | क्योंकि इनसानो-हैवान का एक ही अंजाम है। दोनों दम छोड़ते, दोनों में एक-सा दम है, इसलिए इनसान को हैवान की निसबत ज़्यादा फ़ायदा हासिल नहीं होता। सब कुछ बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:20 | सब कुछ एक ही जगह चला जाता है, सब कुछ ख़ाक से बना है और सब कुछ दुबारा ख़ाक में मिल जाएगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 3:21 | कौन यक़ीन से कह सकता है कि इनसान की रूह ऊपर की तरफ़ जाती और हैवान की रूह नीचे ज़मीन में उतरती है?” | |
Chapter 4
| Eccl | UrduGeoD | 4:1 | मैंने एक बार फिर नज़र डाली तो मुझे वह तमाम ज़ुल्म नज़र आया जो सूरज तले होता है। मज़लूमों के आँसू बहते हैं, और तसल्ली देनेवाला कोई नहीं होता। ज़ालिम उनसे ज़्यादती करते हैं, और तसल्ली देनेवाला कोई नहीं होता। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:2 | यह देखकर मैंने मुरदों को मुबारक कहा, हालाँकि वह अरसे से वफ़ात पा चुके थे। मैंने कहा, “वह हाल के ज़िंदा लोगों से कहीं मुबारक हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:3 | लेकिन इनसे ज़्यादा मुबारक वह है जो अब तक वुजूद में नहीं आया, जिसने वह तमाम बुराइयाँ नहीं देखीं जो सूरज तले होती हैं।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:4 | मैंने यह भी देखा कि सब लोग इसलिए मेहनत-मशक़्क़त और महारत से काम करते हैं कि एक दूसरे से हसद करते हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:6 | लेकिन दूसरी तरफ़ अगर कोई मुट्ठी-भर रोज़ी कमाकर सुकून के साथ ज़िंदगी गुज़ार सके तो यह इससे बेहतर है कि दोनों मुट्ठियाँ सिर-तोड़ मेहनत और हवा को पकड़ने की कोशिशों के बाद ही भरें। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:8 | एक आदमी अकेला ही था। न उसके बेटा था, न भाई। वह बेहद मेहनत-मशक़्क़त करता रहा, लेकिन उस की आँखें कभी अपनी दौलत से मुतमइन न थीं। सवाल यह रहा, “मैं इतनी सिर-तोड़ कोशिश किसके लिए कर रहा हूँ? मैं अपनी जान को ज़िंदगी के मज़े लेने से क्यों महरूम रख रहा हूँ?” यह भी बातिल और ना-गवार मामला है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:10 | अगर एक गिर जाए तो उसका साथी उसे दुबारा खड़ा करेगा। लेकिन उस पर अफ़सोस जो गिर जाए और कोई साथी न हो जो उसे दुबारा खड़ा करे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:11 | नीज़, जब दो सर्दियों के मौसम में मिलकर बिस्तर पर लेट जाएँ तो वह गरम रहते हैं। जो तनहा है वह किस तरह गरम हो जाएगा? | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:12 | एक शख़्स पर क़ाबू पाया जा सकता है जबकि दो मिलकर अपना दिफ़ा कर सकते हैं। तीन लड़ियोंवाली रस्सी जल्दी से नहीं टूटती। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:13 | जो लड़का ग़रीब लेकिन दानिशमंद है वह उस बुज़ुर्ग लेकिन अहमक़ बादशाह से कहीं बेहतर है जो तंबीह मानने से इनकार करे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:14 | क्योंकि गो वह बूढ़े बादशाह की हुकूमत के दौरान ग़ुरबत में पैदा हुआ था तो भी वह जेल से निकलकर बादशाह बन गया। | |
| Eccl | UrduGeoD | 4:15 | लेकिन फिर मैंने देखा कि सूरज तले तमाम लोग एक और लड़के के पीछे हो लिए जिसे पहले की जगह तख़्तनशीन होना था। | |
Chapter 5
| Eccl | UrduGeoD | 5:1 | अल्लाह के घर में जाते वक़्त अपने क़दमों का ख़याल रख और सुनने के लिए तैयार रह। यह अहमक़ों की क़ुरबानियों से कहीं बेहतर है, क्योंकि वह जानते ही नहीं कि ग़लत काम कर रहे हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:2 | बोलने में जल्दबाज़ी न कर, तेरा दिल अल्लाह के हुज़ूर कुछ बयान करने में जल्दी न करे। अल्लाह आसमान पर है जबकि तू ज़मीन पर ही है। लिहाज़ा बेहतर है कि तू कम बातें करे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:3 | क्योंकि जिस तरह हद से ज़्यादा मेहनत-मशक़्क़त से ख़ाब आने लगते हैं उसी तरह बहुत बातें करने से आदमी की हमाक़त ज़ाहिर होती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:4 | अगर तू अल्लाह के हुज़ूर मन्नत माने तो उसे पूरा करने में देर मत कर। वह अहमक़ों से ख़ुश नहीं होता, चुनाँचे अपनी मन्नत पूरी कर। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:6 | अपने मुँह को इजाज़त न दे कि वह तुझे गुनाह में फँसाए, और अल्लाह के पैग़ंबर के सामने न कह, “मुझसे ग़ैरइरादी ग़लती हुई है।” क्या ज़रूरत है कि अल्लाह तेरी बात से नाराज़ होकर तेरी मेहनत का काम तबाह करे? | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:7 | जहाँ बहुत ख़ाब देखे जाते हैं वहाँ फ़ज़ूल बातें और बेशुमार अलफ़ाज़ होते हैं। चुनाँचे अल्लाह का ख़ौफ़ मान! | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:8 | क्या तुझे सूबे में ऐसे लोग नज़र आते हैं जो ग़रीबों पर ज़ुल्म करते, उनका हक़ मारते और उन्हें इनसाफ़ से महरूम रखते हैं? ताज्जुब न कर, क्योंकि एक सरकारी मुलाज़िम दूसरे की निगहबानी करता है, और उन पर मज़ीद मुलाज़िम मुक़र्रर होते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:9 | चुनाँचे मुल्क के लिए हर लिहाज़ से फ़ायदा इसमें है कि ऐसा बादशाह उस पर हुकूमत करे जो काश्तकारी की फ़िकर करता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:10 | जिसे पैसे प्यारे हों वह कभी मुतमइन नहीं होगा, ख़ाह उसके पास कितने ही पैसे क्यों न हों। जो ज़रदोस्त हो वह कभी आसूदा नहीं होगा, ख़ाह उसके पास कितनी ही दौलत क्यों न हो। यह भी बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:11 | जितना माल में इज़ाफ़ा हो उतना ही उनकी तादाद बढ़ती है जो उसे खा जाते हैं। उसके मालिक को उसका क्या फ़ायदा है सिवाए इसके कि वह उसे देख देखकर मज़ा ले? | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:12 | काम-काज करनेवाले की नींद मीठी होती है, ख़ाह उसने कम या ज़्यादा खाना खाया हो, लेकिन अमीर की दौलत उसे सोने नहीं देती। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:13 | मुझे सूरज तले एक निहायत बुरी बात नज़र आई। जो दौलत किसी ने अपने लिए महफ़ूज़ रखी वह उसके लिए नुक़सान का बाइस बन गई। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:14 | क्योंकि जब यह दौलत किसी मुसीबत के बाइस तबाह हो गई और आदमी के हाँ बेटा पैदा हुआ तो उसके हाथ में कुछ नहीं था। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:15 | माँ के पेट से निकलते वक़्त वह नंगा था, और इसी तरह कूच करके चला भी जाएगा। उस की मेहनत का कोई फल नहीं होगा जिसे वह अपने साथ ले जा सके। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:16 | यह भी बहुत बुरी बात है कि जिस तरह इनसान आया उसी तरह कूच करके चला भी जाता है। उसे क्या फ़ायदा हुआ है कि उसने हवा के लिए मेहनत-मशक़्क़त की हो? | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:17 | जीते-जी वह हर दिन तारीकी में खाना खाते हुए गुज़ारता, ज़िंदगी-भर वह बड़ी रंजीदगी, बीमारी और ग़ुस्से में मुब्तला रहता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:18 | तब मैंने जान लिया कि इनसान के लिए अच्छा और मुनासिब है कि वह जितने दिन अल्लाह ने उसे दिए हैं खाए पिए और सूरज तले अपनी मेहनत-मशक़्क़त के फल का मज़ा ले, क्योंकि यही उसके नसीब में है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 5:19 | क्योंकि जब अल्लाह किसी शख़्स को मालो-मता अता करके उसे इस क़ाबिल बनाए कि उसका मज़ा ले सके, अपना नसीब क़बूल कर सके और मेहनत-मशक़्क़त के साथ साथ ख़ुश भी हो सके तो यह अल्लाह की बख़्शिश है। | |
Chapter 6
| Eccl | UrduGeoD | 6:2 | अल्लाह किसी आदमी को मालो-मता और इज़्ज़त अता करता है। ग़रज़ उसके पास सब कुछ है जो उसका दिल चाहे। लेकिन अल्लाह उसे इन चीज़ों से लुत्फ़ उठाने नहीं देता बल्कि कोई अजनबी उसका मज़ा लेता है। यह बातिल और एक बड़ी मुसीबत है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:3 | हो सकता है कि किसी आदमी के सौ बच्चे पैदा हों और वह उम्ररसीदा भी हो जाए, लेकिन ख़ाह वह कितना बूढ़ा क्यों न हो जाए, अगर अपनी ख़ुशहाली का मज़ा न ले सके और आख़िरकार सहीह रुसूमात के साथ दफ़नाया न जाए तो इसका क्या फ़ायदा? मैं कहता हूँ कि उस की निसबत माँ के पेट में ज़ाया हो गए बच्चे का हाल बेहतर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:4 | बेशक ऐसे बच्चे का आना बेमानी है, और वह अंधेरे में ही कूच करके चला जाता बल्कि उसका नाम तक अंधेरे में छुपा रहता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:5 | लेकिन गो उसने न कभी सूरज देखा, न उसे कभी मालूम हुआ कि ऐसी चीज़ है ताहम उसे मज़कूरा आदमी से कहीं ज़्यादा आरामो-सुकून हासिल है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:6 | और अगर वह दो हज़ार साल तक जीता रहे, लेकिन अपनी ख़ुशहाली से लुत्फ़अंदोज़ न हो सके तो क्या फ़ायदा है? सबको तो एक ही जगह जाना है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:7 | इनसान की तमाम मेहनत-मशक़्क़त का यह मक़सद है कि पेट भर जाए, तो भी उस की भूक कभी नहीं मिटती। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:8 | दानिशमंद को क्या हासिल है जिसके बाइस वह अहमक़ से बरतर है? इसका क्या फ़ायदा है कि ग़रीब आदमी ज़िंदों के साथ मुनासिब सुलूक करने का फ़न सीख ले? | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:9 | दूर-दराज़ चीज़ों के आरज़ूमंद रहने की निसबत बेहतर यह है कि इनसान उन चीज़ों से लुत्फ़ उठाए जो आँखों के सामने ही हैं। यह भी बातिल और हवा को पकड़ने के बराबर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:10 | जो कुछ भी पेश आता है उसका नाम पहले ही रखा गया है, जो भी इनसान वुजूद में आता है वह पहले ही मालूम था। कोई भी इनसान उसका मुक़ाबला नहीं कर सकता जो उससे ताक़तवर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 6:11 | क्योंकि जितनी भी बातें इनसान करे उतना ही ज़्यादा मालूम होगा कि बातिल हैं। इनसान के लिए इसका क्या फ़ायदा? | |
Chapter 7
| Eccl | UrduGeoD | 7:2 | ज़ियाफ़त करनेवालों के घर में जाने की निसबत मातम करनेवालों के घर में जाना बेहतर है, क्योंकि हर इनसान का अंजाम मौत ही है। जो ज़िंदा हैं वह इस बात पर ख़ूब ध्यान दें। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:4 | दानिशमंद का दिल मातम करनेवालों के घर में ठहरता जबकि अहमक़ का दिल ऐशो-इशरत करनेवालों के घर में टिक जाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:6 | अहमक़ के क़हक़हे देगची तले चटख़नेवाले काँटों की आग की मानिंद हैं। यह भी बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:10 | यह न पूछ कि आज की निसबत पुराना ज़माना बेहतर क्यों था, क्योंकि यह हिकमत की बात नहीं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:11 | अगर हिकमत के अलावा मीरास में मिलकियत भी मिल जाए तो यह अच्छी बात है, यह उनके लिए सूदमंद है जो सूरज देखते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:12 | क्योंकि हिकमत पैसों की तरह पनाह देती है, लेकिन हिकमत का ख़ास फ़ायदा यह है कि वह अपने मालिक की जान बचाए रखती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:14 | ख़ुशी के दिन ख़ुश हो, लेकिन मुसीबत के दिन ख़याल रख कि अल्लाह ने यह दिन भी बनाया और वह भी इसलिए कि इनसान अपने मुस्तक़बिल के बारे में कुछ मालूम न कर सके। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:15 | अपनी अबस ज़िंदगी के दौरान मैंने दो बातें देखी हैं। एक तरफ़ रास्तबाज़ अपनी रास्तबाज़ी के बावुजूद तबाह हो जाता जबकि दूसरी तरफ़ बेदीन अपनी बेदीनी के बावुजूद उम्ररसीदा हो जाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:16 | न हद से ज़्यादा रास्तबाज़ी दिखा, न हद से ज़्यादा दानिशमंदी। अपने आपको तबाह करने की क्या ज़रूरत है? | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:17 | न हद से ज़्यादा बेदीनी, न हद से ज़्यादा हमाक़त दिखा। मुक़र्ररा वक़्त से पहले मरने की क्या ज़रूरत है? | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:18 | अच्छा है कि तू यह बात थामे रखे और दूसरी भी न छोड़े। जो अल्लाह का ख़ौफ़ माने वह दोनों ख़तरों से बच निकलेगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:20 | दुनिया में कोई भी इनसान इतना रास्तबाज़ नहीं कि हमेशा अच्छा काम करे और कभी गुनाह न करे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:21 | लोगों की हर बात पर ध्यान न दे, ऐसा न हो कि तू नौकर की लानत भी सुन ले जो वह तुझ पर करता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:23 | हिकमत के ज़रीए मैंने इन तमाम बातों की जाँच-पड़ताल की। मैं बोला, “मैं दानिशमंद बनना चाहता हूँ,” लेकिन हिकमत मुझसे दूर रही। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:25 | चुनाँचे मैं रुख़ बदलकर पूरे ध्यान से इसकी तहक़ीक़ो-तफ़तीश करने लगा कि हिकमत और मुख़्तलिफ़ बातों के सहीह नतायज क्या हैं। नीज़, मैं बेदीनी की हमाक़त और बेहुदगी की दीवानगी मालूम करना चाहता था। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:26 | मुझे मालूम हुआ कि मौत से कहीं तलख़ वह औरत है जो फंदा है, जिसका दिल जाल और हाथ ज़ंजीरें हैं। जो आदमी अल्लाह को मंज़ूर हो वह बच निकलेगा, लेकिन गुनाहगार उसके जाल में उलझ जाएगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:27 | वाइज़ फ़रमाता है, “यह सब कुछ मुझे मालूम हुआ जब मैंने मुख़्तलिफ़ बातें एक दूसरे के साथ मुंसलिक कीं ताकि सहीह नतायज तक पहुँचूँ। | |
| Eccl | UrduGeoD | 7:28 | लेकिन जिसे मैं ढूँडता रहा वह न मिला। हज़ार अफ़राद में से मुझे सिर्फ़ एक ही दियानतदार मर्द मिला, लेकिन एक भी दियानतदार औरत नहीं। | |
Chapter 8
| Eccl | UrduGeoD | 8:1 | कौन दानिशमंद की मानिंद है? कौन बातों की सहीह तशरीह करने का इल्म रखता है? हिकमत इनसान का चेहरा रौशन और उसके मुँह का सख़्त अंदाज़ नरम कर देती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:3 | बादशाह के हुज़ूर से दूर होने में जल्दबाज़ी न कर। किसी बुरे मामले में मुब्तला न हो जा, क्योंकि उसी की मरज़ी चलती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:4 | बादशाह के फ़रमान के पीछे उसका इख़्तियार है, इसलिए कौन उससे पूछे, “तू क्या कर रहा है?” | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:5 | जो उसके हुक्म पर चले उसका किसी बुरे मामले से वास्ता नहीं पड़ेगा, क्योंकि दानिशमंद दिल मुनासिब वक़्त और इनसाफ़ की राह जानता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:6 | क्योंकि हर मामले के लिए मुनासिब वक़्त और इनसाफ़ की राह होती है। लेकिन मुसीबत इनसान को दबाए रखती है, | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:8 | कोई भी इनसान हवा को बंद रखने के क़ाबिल नहीं। इसी तरह किसी को भी अपनी मौत का दिन मुक़र्रर करने का इख़्तियार नहीं। यह उतना यक़ीनी है जितना यह कि फ़ौजियों को जंग के दौरान फ़ारिग़ नहीं किया जाता और बेदीनी बेदीन को नहीं बचाती। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:9 | मैंने यह सब कुछ देखा जब पूरे दिल से उन तमाम बातों पर ध्यान दिया जो सूरज तले होती हैं, जहाँ इस वक़्त एक आदमी दूसरे को नुक़सान पहुँचाने का इख़्तियार रखता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:10 | फिर मैंने देखा कि बेदीनों को इज़्ज़त के साथ दफ़नाया गया। यह लोग मक़दिस के पास आते-जाते थे! लेकिन जो रास्तबाज़ थे उनकी याद शहर में मिट गई। यह भी बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:11 | मुजरिमों को जल्दी से सज़ा नहीं दी जाती, इसलिए लोगों के दिल बुरे काम करने के मनसूबों से भर जाते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:12 | गुनाहगार से सौ गुनाह सरज़द होते हैं, तो भी उम्ररसीदा हो जाता है। बेशक मैं यह भी जानता हूँ कि ख़ुदातरस लोगों की ख़ैर होगी, उनकी जो अल्लाह के चेहरे से डरते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:13 | बेदीन की ख़ैर नहीं होगी, क्योंकि वह अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं मानता। उस की ज़िंदगी के दिन ज़्यादा नहीं बल्कि साय जैसे आरिज़ी होंगे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:14 | तो भी एक और बात दुनिया में पेश आती है जो बातिल है, रास्तबाज़ों को वह सज़ा मिलती है जो बेदीनों को मिलनी चाहिए, और बेदीनों को वह अज्र मिलता है जो रास्तबाज़ों को मिलना चाहिए। यह देखकर मैं बोला, “यह भी बातिल ही है।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:15 | चुनाँचे मैंने ख़ुशी की तारीफ़ की, क्योंकि सूरज तले इनसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह खाए पिए और ख़ुश रहे। फिर मेहनत-मशक़्क़त करते वक़्त ख़ुशी उतने ही दिन उसके साथ रहेगी जितने अल्लाह ने सूरज तले उसके लिए मुक़र्रर किए हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:16 | मैंने अपनी पूरी ज़हनी ताक़त इस पर लगाई कि हिकमत जान लूँ और ज़मीन पर इनसान की मेहनतों का मुआयना कर लूँ, ऐसी मेहनतें कि उसे दिन-रात नींद नहीं आती। | |
| Eccl | UrduGeoD | 8:17 | तब मैंने अल्लाह का सारा काम देखकर जान लिया कि इनसान उस तमाम काम की तह तक नहीं पहुँच सकता जो सूरज तले होता है। ख़ाह वह उस की कितनी तहक़ीक़ क्यों न करे तो भी वह तह तक नहीं पहुँच सकता। हो सकता है कोई दानिशमंद दावा करे, “मुझे इसकी पूरी समझ आई है,” लेकिन ऐसा नहीं है, वह तह तक नहीं पहुँच सकता। | |
Chapter 9
| Eccl | UrduGeoD | 9:1 | इन तमाम बातों पर मैंने दिल से ग़ौर किया। इनके मुआयने के बाद मैंने नतीजा निकाला कि रास्तबाज़ और दानिशमंद और जो कुछ वह करें अल्लाह के हाथ में हैं। ख़ाह मुहब्बत हो ख़ाह नफ़रत, इसकी भी समझ इनसान को नहीं आती, दोनों की जड़ें उससे पहले माज़ी में हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:2 | सबके नसीब में एक ही अंजाम है, रास्तबाज़ और बेदीन के, नेक और बद के, पाक और नापाक के, क़ुरबानियाँ पेश करनेवाले के और उसके जो कुछ नहीं पेश करता। अच्छे शख़्स और गुनाहगार का एक ही अंजाम है, हलफ़ उठानेवाले और इससे डरकर गुरेज़ करनेवाले की एक ही मनज़िल है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:3 | सूरज तले हर काम की यही मुसीबत है कि हर एक के नसीब में एक ही अंजाम है। इनसान का मुलाहज़ा कर। उसका दिल बुराई से भरा रहता बल्कि उम्र-भर उसके दिल में बेहुदगी रहती है। लेकिन आख़िरकार उसे मुरदों में ही जा मिलना है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:4 | जो अब तक ज़िंदों में शरीक है उसे उम्मीद है। क्योंकि ज़िंदा कुत्ते का हाल मुरदा शेर से बेहतर है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:5 | कम अज़ कम जो ज़िंदा हैं वह जानते हैं कि हम मरेंगे। लेकिन मुरदे कुछ नहीं जानते, उन्हें मज़ीद कोई अज्र नहीं मिलना है। उनकी यादें भी मिट जाती हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:6 | उनकी मुहब्बत, नफ़रत और ग़ैरत सब कुछ बड़ी देर से जाती रही है। अब वह कभी भी उन कामों में हिस्सा नहीं लेंगे जो सूरज तले होते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:7 | चुनाँचे जाकर अपना खाना ख़ुशी के साथ खा, अपनी मै ज़िंदादिली से पी, क्योंकि अल्लाह काफ़ी देर से तेरे कामों से ख़ुश है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:9 | अपने जीवनसाथी के साथ जो तुझे प्यारा है ज़िंदगी के मज़े लेता रह। सूरज तले की बातिल ज़िंदगी के जितने दिन अल्लाह ने तुझे बख़्श दिए हैं उन्हें इसी तरह गुज़ार! क्योंकि ज़िंदगी में और सूरज तले तेरी मेहनत-मशक़्क़त में यही कुछ तेरे नसीब में है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:10 | जिस काम को भी हाथ लगाए उसे पूरे जोशो-ख़ुरोश से कर, क्योंकि पाताल में जहाँ तू जा रहा है न कोई काम है, न मनसूबा, न इल्म और न हिकमत। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:11 | मैंने सूरज तले मज़ीद कुछ देखा। यक़ीनी बात नहीं कि मुक़ाबले में सबसे तेज़ दौड़नेवाला जीत जाए, कि जंग में पहलवान फ़तह पाए, कि दानिशमंद को ख़ुराक हासिल हो, कि समझदार को दौलत मिले या कि आलिम मंज़ूरी पाए। नहीं, सब कुछ मौक़े और इत्तफ़ाक़ पर मुनहसिर होता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:12 | नीज़, कोई भी इनसान नहीं जानता कि मुसीबत का वक़्त कब उस पर आएगा। जिस तरह मछलियाँ ज़ालिम जाल में उलझ जाती या परिंदे फंदे में फँस जाते हैं उसी तरह इनसान मुसीबत में फँस जाता है। मुसीबत अचानक ही उस पर आ जाती है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:14 | कहीं कोई छोटा शहर था जिसमें थोड़े-से अफ़राद बसते थे। एक दिन एक ताक़तवर बादशाह उससे लड़ने आया। उसने उसका मुहासरा किया और इस मक़सद से उसके इर्दगिर्द बड़े बड़े बुर्ज खड़े किए। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:15 | शहर में एक आदमी रहता था जो दानिशमंद अलबत्ता ग़रीब था। इस शख़्स ने अपनी हिकमत से शहर को बचा लिया। लेकिन बाद में किसी ने भी ग़रीब को याद न किया। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:16 | यह देखकर मैं बोला, “हिक्मत ताक़त से बेहतर है,” लेकिन ग़रीब की हिकमत हक़ीर जानी जाती है। कोई भी उस की बातों पर ध्यान नहीं देता। | |
| Eccl | UrduGeoD | 9:17 | दानिशमंद की जो बातें आराम से सुनी जाएँ वह अहमक़ों के दरमियान रहनेवाले हुक्मरान के ज़ोरदार एलानात से कहीं बेहतर हैं। | |
Chapter 10
| Eccl | UrduGeoD | 10:1 | मरी हुई मक्खियाँ ख़ुशबूदार तेल ख़राब करती हैं, और हिकमत और इज़्ज़त की निसबत थोड़ी-सी हमाक़त का ज़्यादा असर होता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:3 | रास्ते पर चलते वक़्त भी अहमक़ समझ से ख़ाली है, जिससे भी मिले उसे बताता है कि वह बेवुक़ूफ़ है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:4 | अगर हुक्मरान तुझसे नाराज़ हो जाए तो अपनी जगह मत छोड़, क्योंकि पुरसुकून रवैया बड़ी बड़ी ग़लतियाँ दूर कर देता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:7 | मैंने ग़ुलामों को घोड़े पर सवार और हुक्मरानों को ग़ुलामों की तरह पैदल चलते देखा है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:8 | जो गढ़ा खोदे वह ख़ुद उसमें गिर सकता है, जो दीवार गिरा दे हो सकता है कि साँप उसे डसे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:9 | जो कान से पत्थर निकाले उसे चोट लग सकती है, जो लकड़ी चीर डाले वह ज़ख़मी हो जाने के ख़तरे में है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:10 | अगर कुल्हाड़ी कुंद हो और कोई उसे तेज़ न करे तो ज़्यादा ताक़त दरकार है। लिहाज़ा हिकमत को सहीह तौर से अमल में ला, तब ही कामयाबी हासिल होगी। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:11 | अगर इससे पहले कि सपेरा साँप पर क़ाबू पाए वह उसे डसे तो फिर सपेरा होने का क्या फ़ायदा? | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:12 | दानिशमंद अपने मुँह की बातों से दूसरों की मेहरबानी हासिल करता है, लेकिन अहमक़ के अपने ही होंट उसे हड़प कर लेते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:14 | ऐसा शख़्स बातें करने से बाज़ नहीं आता, गो इनसान मुस्तक़बिल के बारे में कुछ नहीं जानता। कौन उसे बता सकता है कि उसके बाद क्या कुछ होगा? | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:16 | उस मुल्क पर अफ़सोस जिसका बादशाह बच्चा है और जिसके बुज़ुर्ग सुबह ही ज़ियाफ़त करने लगते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:17 | मुबारक है वह मुल्क जिसका बादशाह शरीफ़ है और जिसके बुज़ुर्ग नशे में धुत नहीं रहते बल्कि मुनासिब वक़्त पर और नज़मो-ज़ब्त के साथ खाना खाते हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:18 | जो सुस्त है उसके घर के शहतीर झुकने लगते हैं, जिसके हाथ ढीले हैं उस की छत से पानी टपकने लगता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 10:19 | ज़ियाफ़त करने से हँसी-ख़ुशी और मै पीने से ज़िंदादिली पैदा होती है, लेकिन पैसा ही सब कुछ मुहैया करता है। | |
Chapter 11
| Eccl | UrduGeoD | 11:1 | अपनी रोटी पानी पर फेंककर जाने दे तो मुतअद्दिद दिनों के बाद वह तुझे फिर मिल जाएगी। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:2 | अपनी मिलकियत सात बल्कि आठ मुख़्तलिफ़ कामों में लगा दे, क्योंकि तुझे क्या मालूम कि मुल्क किस किस मुसीबत से दोचार होगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:3 | अगर बादल पानी से भरे हों तो ज़मीन पर बारिश ज़रूर होगी। दरख़्त जुनूब या शिमाल की तरफ़ गिर जाए तो उसी तरफ़ पड़ा रहेगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:4 | जो हर वक़्त हवा का रुख़ देखता रहे वह कभी बीज नहीं बोएगा। जो बादलों को तकता रहे वह कभी फ़सल की कटाई नहीं करेगा। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:5 | जिस तरह न तुझे हवा के चक्कर मालूम हैं, न यह कि माँ के पेट में बच्चा किस तरह तश्कील पाता है उसी तरह तू अल्लाह का काम नहीं समझ सकता, जो सब कुछ अमल में लाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:6 | सुबह के वक़्त अपना बीज बो और शाम को भी काम में लगा रह, क्योंकि क्या मालूम कि किस काम में कामयाबी होगी, इसमें, उसमें या दोनों में। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:8 | जितने भी साल इनसान ज़िंदा रहे उतने साल वह ख़ुशबाश रहे। साथ साथ उसे याद रहे कि तारीक दिन भी आनेवाले हैं, और कि उनकी बड़ी तादाद होगी। जो कुछ आनेवाला है वह बातिल ही है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 11:9 | ऐ नौजवान, जब तक तू जवान है ख़ुश रह और जवानी के मज़े लेता रह। जो कुछ तेरा दिल चाहे और तेरी आँखों को पसंद आए वह कर, लेकिन याद रहे कि जो कुछ भी तू करे उसका जवाब अल्लाह तुझसे तलब करेगा। | |
Chapter 12
| Eccl | UrduGeoD | 12:1 | जवानी में ही अपने ख़ालिक़ को याद रख, इससे पहले कि मुसीबत के दिन आएँ, वह साल क़रीब आएँ जिनके बारे में तू कहेगा, “यह मुझे पसंद नहीं।” | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:2 | उसे याद रख इससे पहले कि रौशनी तेरे लिए ख़त्म हो जाए, सूरज, चाँद और सितारे अंधेरे हो जाएँ और बारिश के बाद बादल लौट आएँ। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:3 | उसे याद रख, इससे पहले कि घर के पहरेदार थरथराने लगें, ताक़तवर आदमी कुबड़े हो जाएँ, गंदुम पीसनेवाली नौकरानियाँ कम होने के बाइस काम करना छोड़ दें और खिड़कियों में से देखनेवाली ख़वातीन धुँधला जाएँ। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:4 | उसे याद रख, इससे पहले कि गली में पहुँचानेवाला दरवाज़ा बंद हो जाए और चक्की की आवाज़ आहिस्ता हो जाए। जब चिड़ियाँ चहचहाने लगेंगी तो तू जाग उठेगा, लेकिन तमाम गीतों की आवाज़ दबी-सी सुनाई देगी। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:5 | उसे याद रख, इससे पहले कि तू ऊँची जगहों और गलियों के ख़तरों से डरने लगे। गो बादाम का फूल खिल जाए, टिड्डी बोझ तले दब जाए और करीर का फूल फूट निकले, लेकिन तू कूच करके अपने अबदी घर में चला जाएगा, और मातम करनेवाले गलियों में घूमते फिरेंगे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:6 | अल्लाह को याद रख, इससे पहले कि चाँदी का रस्सा टूट जाए, सोने का बरतन टुकड़े टुकड़े हो जाए, चश्मे के पास घड़ा पाश पाश हो जाए और कुएँ का पानी निकालनेवाला पहिया टूटकर उसमें गिर जाए। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:7 | तब तेरी ख़ाक दुबारा उस ख़ाक में मिल जाएगी जिससे निकल आई और तेरी रूह उस ख़ुदा के पास लौट जाएगी जिसने उसे बख़्शा था। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:9 | दानिशमंद होने के अलावा वाइज़ क़ौम को इल्मो-इरफ़ान की तालीम देता रहा। उसने मुतअद्दिद अमसाल को सहीह वज़न देकर उनकी जाँच-पड़ताल की और उन्हें तरतीबवार जमा किया। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:10 | वाइज़ की कोशिश थी कि मुनासिब अलफ़ाज़ इस्तेमाल करे और दियानतदारी से सच्ची बातें लिखे। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:11 | दानिशमंदों के अलफ़ाज़ आँकुस की मानिंद हैं, तरतीब से जमाशुदा अमसाल लकड़ी में मज़बूती से ठोंकी गई कीलों जैसी हैं। यह एक ही गल्लाबान की दी हुई हैं। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:12 | मेरे बेटे, इसके अलावा ख़बरदार रह। किताबें लिखने का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं हो जाएगा, और हद से ज़्यादा कुतुबबीनी से जिस्म थक जाता है। | |
| Eccl | UrduGeoD | 12:13 | आओ, इख़्तिताम पर हम तमाम तालीम के ख़ुलासे पर ध्यान दें। रब का ख़ौफ़ मान और उसके अहकाम की पैरवी कर। यह हर इनसान का फ़र्ज़ है। | |